हालिया दिनों में भाजपा ने मध्य प्रदेश व राजस्थान में अपना एक अभिनव प्रयोग किया था जिसमें पार्टी ने अपने कई मौजूदा सांसदों को विधायकी के चुनाव लड़वा दिए थे, जो हारे सो किनारे, जो जीते उनमें से कई मंत्री व स्पीकर भी बना दिए गए। पार्टी अब यही प्रयोग हरियाणा में भी दुहराना चाहती है। भाजपा को लगता है कि इस छोटे से राज्य में उन्हें मोदी व श्री राम के नाम पर अपने सांसदों को जिताने में कोई परेशानी नहीं आ रही पर विधानसभा चुनाव में मुकाबला कड़ा है, सो, भाजपा के लिए यहां विधानसभा की एक-एक सीट महत्वपूर्ण हो गई है। जैसे भिवानी महेंद्रगढ़ की लोकसभा सीट पर केद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को चुनाव लड़वाने का फैसला हो सकता है, जहां से मौजूदा सांसद धर्मवीर सिंह हैं, इसके अलावा फरीदाबाद के सांसद कृष्णपाल गुर्जर, रोहतक के अरविन्द शर्मा व सोनीपत के सांसद रमेश चंद्र कौशिक से भी विधानसभा चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है। पर धर्मवीर सिंह समेत कई मौजूदा सांसद विधानसभा का चुनाव लड़ने से मना कर रहे हैं, इनका कहना है कि ’हमने राजस्थान-मध्य प्रदेश में अपने साथी सांसदों का हश्र पहले ही देख लिया है।’
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महुआ मोइत्रा और निशिकांत दुबे के बीच जब से तलवारें तनी हैं और ’कैश फॉर क्वेरी’ का मामला सुर्खियां बटोर रहा है, लंबी चुप्पी के बाद इस बार ममता बनर्जी सामने आई हैं और वह भी महुआ के बचाव में। इससे पहले कयास लगाए जा रहे थे कि दीदी महुआ से इस बात को लेकर नाराज़ हैं कि इस तृणमूल सांसद ने दिल्ली में पार्टी के बजाए खुद को आगे बढ़ाया है। पर दीदी की सरकार ने आनन-फानन में पश्चिम बंगाल में ताजपुर पोर्ट को विकसित करने के लिए अडानी ग्रुप को दिए गए 25 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को रद्द कर इसका नया टेंडर जारी करने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही महुआ को भी नदिया जिले में पार्टी संगठन को मजबूत करने की महती जिम्मेदारी मिली है। पिछले दिनों जब महुआ कोलकाता में थीं तो अभिषेक बनर्जी ने उन्हें मिलने के लिए अपने घर बुलाया, महुआ फूल-मिठाई व केक लेकर अभिषेक के घर पहुंची और नदिया जिले की जिम्मेदारी दिए जाने के लिए उनका आभार जताया। अभिषेक ने इस बातचीत में महुआ से साफ-साफ कहा-’पार्टी एक परिवार की तरह होती है और परिवार में हर सदस्य की भूमिकाएं बदलती रहती हैं, सो सदस्य को पार्टी जो भी जिम्मेदारी दे उसे सहर्ष स्वीकार कर इसे एक चुनौती की तरह लेना चाहिए।’ इशारों ही इशारों में अभिषेक ने महुआ को बता दिया कि ’कोई जरूरी नहीं कि उन्हें हर बार लोकसभा का चुनाव ही लड़वाया जाए, उन्हें पार्टी संगठन की सेवा में भी भेजा जा सकता है’, समझदार के लिए इशारा काफी है।
मध्य प्रदेश भाजपा में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। ग्वालियर चंबल संभाग से भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर का एक वीडियो खासा वायरल हो गया। जिसमें करोड़ों के लेन-देन की बात हो रही है। यह वीडियो तब का बताया जा रहा है जब नरेंद्र तोमर केंद्र में खनन मंत्री थे। देवेंद्र तोमर ने इस वीडियो के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज करवाई है कि इस वीडियो में कांट-छांट हुई है, पर उन्होंने अपनी शिकायत में यह नहीं कहा है कि यह वीडियो फेक है। इस वीडियो की वजह से तोमर घिर गए हैं, पर सरकार ने इस वीडियो की जांच न तो ईडी या सीबीआई को सौंपी है, कहा यह भी जा रहा है कि इस वीडियो को वायरल करवाने में प्रदेश के ही कुछ भाजपा नेताओं के हाथ हैं।
अशोक गहलोत इस दफे के चुनाव में ज्यादा अपने मन की कर रहे हैं। पूर्व मंत्री बीना काक की टिकट के मसले पर वे हाईकमान से भिड़ गए हैं। यहां तक कि बीना काक के मुद्दे पर वह राहुल गांधी की राय की भी अनदेखी कर रहे हैं। दरअसल, बीना 2013 का चुनाव हार गई थीं, सो उन्हें 2018 के चुनाव में टिकट ही नहीं दिया गया। तो वह नाराज़ होकर सार्वजनिक रूप से गांधी परिवार पर ही बरस पड़ीं, गांधी परिवार खास कर राहुल गांधी इस बात को भूले नहीं हैं। पर गहलोत राजस्थान में अपने किस्म की राजनीति करना चाहते हैं।
लोकसभा में इस गुरूवार की रात चंद्रयान-3 की सफलता की चर्चा के दौरान भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी अपने साथी सांसद बसपा के कुंवर दानिश अली से उखड़ गए और उन्हें निशाने पर लेकर अंटशंट बकने लगे और उनके समुदाय को लेकर भी कुछ अप्रिय टिप्पणियां कर दीं, इस बात से भाजपा के अपने मुस्लिम नेता भी उखड़े हुए हैं। भाजपा के एक पुराने मुस्लिम नेता स्वीकार करते हैं कि ’हमारी मजबूरी है कि हम जाएं कहां, कांग्रेस जैसे दल भी अब हिंदुओं को खुश करने की राजनीति कर रहे हैं।’ इसी माहौल को हवा देने के लिए उज्जैन के एक संत डॉ. अवधेशपुरी महाराज ने संघ प्रमुख मोहन भागवत को पत्र लिख कर उनसे मांग की है कि ’अगर भाजपा सचमुच सनातन को बढ़ावा देना चाहती है तो 5 प्रतिशत सीटों से संतों को मैदान में उतारें ताकि वे चुनाव जीत कर संसद में पहुंच कर सनातन के पक्ष में अलख जगा सकें।
सूत्रों की मानें तो भारत में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, दक्षिण कोरिया जैसे प्रमुख देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भारत आने के लिए हामी भर दी है। पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का भारत आना संदेह के घेरे में है, अब कहा जा रहा है कि वे ‘हाइब्रिड मोड’ से यानी कि ऑनलाइन इस शिखर सम्मेलन से जुड़ेंगे। पुतिन की जगह रूस के विदेश मंत्री इस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भारत आएंगे। हालांकि पुतिन को भारत आने में कोई खतरा नहीं था, क्योंकि भारत ने इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट की उस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे जिसके तहत पुतिन गिरफ्तार किए जा सकते थे। जबकि कोरोना के बाद आयोजित होने वाले इस जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए किसी हाइब्रिड मोड का विकल्प नहीं रखा गया था, राष्ट्राध्यक्षों को इस बैठक में ‘इनपर्सन’ ही शामिल होना था, पर लगता है पुतिन के लिए नियमों में ढील दी जा रही है। वैसे भी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को इस बैठक में आने का न्यौता ही नहीं भेजा गया, जिसके बाद कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने जेलेंस्की से बात कर इस पर दुख जताया है।
भाजपा के 2019 के चुनावी घोषणा पत्र का एक अहम बिंदु था ‘समान नागरिक संहिता’ पर इसके लिए पहल हुई उत्तराखंड की भाजपा सरकार की ओर से। इस अधिनियम का मसौदा तैयार करने के लिए 27 मई 2022 को रंजना देसाई विशेषज्ञ कमेटी का गठन हुआ, इस कमेटी को 6 माह का समय दिया गया था और कयास लगाए जा रहे थे कि खींचतान कर यह कमेटी जून 2023 तक ड्राफ्ट रिपोर्ट पेश कर देगी और इस अधिनियम को संसद के विशेष सत्र में पेश किया जा सकेगा। पर कमेटी की 63 बैठकें, 20 हजार लोगों से बातचीत और ढाई लाख मिले सुझावों के बाद भी कुछ ठोस नहीं हो सका। कमेटी का कार्यकाल दूसरी बार 27 सितंबर 2023 तक बढ़ा दिया गया था। अब फिर से तीसरी बार कमेटी के कार्यकाल को 6 महीनों के लिए और बढ़ा दिया गया है यानी अब कमेटी को 27 जनवरी 2024 तक का समय मिल गया है। अभी कमेटी ने प्राप्त सुझावों को छंटनी के लिए विधि आयोग को सौंप दिया है। विधि आयोग इसे कांट-छांट कर एक रिपोर्ट की शक्ल में वापिस इसे कमेटी को सौंप देगा और अब माना जा रहा है कि संसद के बजट सत्र में इस विधेयक को पटल पर रखा जा सकता है।
क्या दिल्ली के मौजूदा सांसदों को भी मध्य प्रदेश की तर्ज पर विधानसभा चुनावों में उतारा जा सकता है? भाजपा यह प्रयोग पहले भी त्रिपुरा व पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में दुहरा चुकी है। छत्तीसगढ़ व राजस्थान में भी इस फार्मूले को आजमाया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो भले ही रमेश बिधूड़ी को दानिश अली के खिलाफ कहे गए उनके अपशब्दों के इनाम के तौर पर पार्टी ने उन्हें टोंक का प्रभारी बना दिया हो, पर दिल्ली से सांसदी का उनका टिकट कटना तय माना जा रहा है। प्रवेश वर्मा का टिकट भी संकट में बताया जा रहा है, उनकी जगह भाजपा क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग को मैदान में उतार सकती है। मनोज तिवारी को लड़ने के लिए बिहार भेजा जा सकता है। गौतम गंभीर का भी टिकट कटना तय माना जा रहा है। मीनाक्षी लेखी के क्षेत्र का सर्वेक्षण का कार्य अभी भी जारी है, सर्वे रिपोर्ट आने के बाद ही भाजपा शीर्ष उनके भाग्य का फैसला कर सकता है।
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2015-16 में आदिवासी विकास योजना के तहत झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में सड़क चौड़ीकरण व इसकी मजबूती के लिए एक प्रोजेक्ट बना और यह कार्य एक निजी कंपनी ’रामकृपाल सिंह कंस्ट्रक्शन’ को आबंटित भी हो गया। इस प्रोजेक्ट में 84 एकड़ भूमि का अधिग्रहण भी होना था। पर भूमि का अधिग्रहण हुआ भी नहीं और अधिकारियों की मिली भगत से इस निजी कंपनी के लिए 67 करोड़ रूपयों की निकासी हो गई। और इसके चार साल बाद ग्रामीण क्षेत्र की इस सड़क के पूर्ण हो जाने का विज्ञापन भी अखबारों में प्रकाशित करा लिया गया। एक एक्टिविस्ट बीरबल बागे ने इस घपले की शिकायत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में की, जिसकी सचिव झारखंड कैडर की 1988 बैच की आईएएस अलका तिवारी हैं। पर शिकायत कर्ता का दावा है कि उनकी शिकायत सरकारी फाइलों में कहीं दब कर रह गई है, अब बागे ने इस मामले का संज्ञान लेने के लिए पीएम से गुहार लगाई है।
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’मेरे हाथ बंधे हैं और मेरे हाथों में चमकती तलवार है
मेरी पीठ में खंजर धंसे हैं और सामने मेरा गुनहगार है’
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 5 साल से ईडी निदेशक के पद पर काबिज रहे केंद्र सरकार के दुलारे संजय मिश्रा की विदाई हो गई और उनकी जगह आईआरएस अधिकारी राहुल नवीन ने ली है। पर राहुल नवीन को प्रभारी निदेशक का दर्जा मिला है। इसका आशय यह निकाला जा सकता है कि मोदी सरकार की अभी भी ईडी के लिए एक पूर्णकालिक निदेशक की तलाश जारी है। ईडी, सीबीआई निदेशक, सीवीसी व डीजीपी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही दो साल की मियाद तय की हुई है, पर संजय मिश्रा अब तलक सेवा विस्तार का लाभ उठाते आ रहे थे। चूंकि पूर्णकालिक निदेशक को सरकार दो साल से पहले बदल नहीं सकती शायद इसीलिए नवीन को ’प्रभारी’ का दर्जा मिला है, यानी वे पूरी तरह से केंद्र सरकार की रहमोकरम पर होंगे और सरकार जब चाहे उन्हें बदल सकती है। अब इस बाबत योगी सरकार की मिसाल ले लें तो मुकुल गोयल के बाद से ही योगी सरकार ने डीजीपी की जगह कार्यवाहक डीजीपी की परंपरा शुरू कर दी है, इस कड़ी में कई नाम आए, मसलन देवेंद्र सिंह चौहान, फिर आर.के.विश्वकर्मा और अभी यूपी के मौजूदा डीजीपी विजय कुमार भी बस कार्यवाहक हैं, इन्हें कभी भी चलता किया जा सकता है। अब बात करें केंद्र दुलारे व पूर्व ईडी निदेशक संजय मिश्रा की तो इन्हें सेंट्रल इकोनॉमिक इंटेलीजेंस ब्यूरो (सीईआईबी) का डायरेक्टर बनाने की तैयारी है। इस ब्यूरो की स्थापना 1985 में की गई थी, यह एक नोडल एजेंसी है, जो बड़े आर्थिक सौदों पर अपनी रिपोर्ट ईडी को सौंपती है। संजय मिश्रा के लिए चीफ इंवेस्टीगेशन ऑफिसर ऑफ इंडिया का एक नया पद सृजित करने के बारे में भी सरकार विचार कर रही है, पर इस पद को मनमाफिक व ताकतवर बनाने के लिए संसद में विधेयक पास कराना जरूरी होगा, सरकार इस बारे में भी विचार कर रही है।
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