जीत के कारवां में था शामिल तूने मुझे अकेला कर दिया’
सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था अब तक के सफर में, लगातार दस जीतों का जुनून, फैंस को मिल रहे बेतरह सुकून, खुशी व उल्लास के समंदर में उतराता पूरा देश, आप इसे भारत कह लें या इंडिया और फिर आई वह आखिरी परीक्षा की घड़ी जिसे आयोजकों ने गणतंत्र दिवस की झांकी बना दी, हमारे खिलाड़ियों के जज्बों की परेड निकाल दी। हमारे जांबाज खिलाड़ियों के ऊपर ख्वामखाह का एक एक्स्ट्रा लोड डाल दिया गया, क्योंकि दिल्ली को बस ऐसे ही किसी नायाब मौके की तलाश थी, खुले बस में खिलाड़ियों के साथ शहंशाह को भी विजयी जुलूस में शामिल होना था, पोस्टर, बैनर, परचम सब पहले से बन कर तैयार थे। जुलूस के खुलूस ने खिलाड़ियों को उनका स्वाभाविक खेल ही नहीं खेलने दिया, जीत को जुनून नहीं, उसे जरूरी बना दिया गया, क्योंकि जीत की स्पीच पहले ही लिखी जा चुकी थी, चुनावी रस में डूबी इबारत टेलिप्रोम्टर पर आने के लिए पहले से ही मचल रही थी, विजयी स्वांग के साथ स्टेडियम में हाथ भी पहले से ही हिलाए जा रहे थे कि खेला हो गया, हमारी तमाम उम्मीदें धराशयी होकर औंधे मुंह जमीन पर आ गिरीं, किया होगा सट्टेवालों ने करोड़ों का वारा-न्यारा, पर जिस देश में क्रिकेट एक धर्म हो, इबादत व पूजा हो, वहां खंडित देव व खंडित आस्थाओं से नए मिथक नहीं गढ़े जा सकते। वैसे टूटे तो उनके दिल भी होंगे जिन्होंने इस मौके को भुनाने के लिए अपना सारा पॉलिटिकल मैनेजमेंट ही दांव पर लगा दिया। क्रिकेट के इस देशव्यापी जुनून से अपने लिए वोटों की नई फसल तैयार करने की हसरत भी अधूरी रह गई और तीसरी बार वर्ल्ड कप जीतने का हमारा सपना भी नरेंद्र मोदी स्टेडियम में झन्न से टूट कर बिखर गया। यह वक्त भी गुज़र जाएगा, ये घाव भी भर जाएंगे, पर बचपन में पढ़ी वह बाबा भारती के घोड़े वाली कहानी हमेशा याद रह जाएगी, दिल को भेदती हुई।
सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस शीर्ष छत्तीसगढ़ में अपने उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव से बेतरह नाराज़ हैं, अभी हालिया संपन्न हुए राज्य के विधानसभा चुनाव में सिंहदेव की भूमिका को लेकर सवालिया निशान लगे हैं, पार्टी को यह खबर मिली है कि भाजपा को फायदा पहुंचाने की नीयत से सिंहदेव ने राज्य की आधा दर्जन से भी ज्यादा सीटों पर अपने वफादारों को निर्दलीय मैदान में उतार दिया और अंदरखाने से उनकी मदद करते रहे। सिंहदेव जानते हैं कि इस दफे राज्य में कांग्रेस व भाजपा में कांटे की लड़ाई है और जब नतीजे आएंगे तो 5-6 सीटों से भी सत्ता का गणित बदला जा सकता है। जब यह भनक दिल्ली को लगी तो मल्लिकार्जुन खड़गे ने फौरन सिंहदेव को दिल्ली तलब कर उनकी क्लास लगाई, खड़गे ने कहा-’पार्टी ने इतना कुछ दिया है आपको, आपको उप मुख्यमंत्री भी बनाया, पर आप बदले में पार्टी को क्या सिला दे रहे हैं?’ पलटवार करते हुए सिंहदेव ने कहा-’पर राहुल जी का वादा तो मुझे ढाई साल मुख्यमंत्री बनाने का था, उस वादे का क्या हुआ?’ खड़गे अपने क्षत्रप से बस इतना ही कह सके-’आपने ऐसा काम किया है कि आप पर भरोसा करना ही मुश्किल है?’ सिंहदेव रायपुर लौट आए हैं, उन्हें 3 दिसंबर का इंतजार है, जब चुनावी नतीजे आएंगे, कांग्रेस शीर्ष की भी सियासी ऊंट पर नज़र है कि जाने वह कौन सी करवट लेगा।
पिछले दिनों प्रियंका ने हिमाचल राज परिवार के वारिस और रानी प्रतिभा सिंह के पुत्र और हिमाचल सरकार में लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह से मुलाकात की। इस मुलाकात में विक्रमादित्य ने प्रियंका को याद दिलाया कि लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें सीएम बनाने का वायदा हुआ था। सूत्रों की मानें तो इसके बाद प्रियंका ने उनके समक्ष साक्ष्य प्रस्तुत किए कि कैसे वह हिमाचल में अपनी समानांतर लॉबी चला रहे हैं, उनके तार कहीं न कहीं भाजपा नेताओं से भी जुड़े हुए हैं, पिछले दिनों उन्होंने दिल्ली आकर गुपचुप भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री से लंबी मुलाकात भी की थी। इस बात को विक्रमादित्य झुठला नहीं पाए, तब प्रियंका ने उनसे दो टूक कहा-’आप नौजवान हैं, अभी आपकी बहुत राजनीति बाकी है, अभी आपको बहुत आगे जाना है, कम से कम पार्टी से बेवफाई करने की न सोचें।’ प्रियंका की बातों का कोई जवाब नहीं था विक्रमादित्य के पास।
इन युवा केंद्रीय मंत्री का हाल-फिलहाल में ही विभाग बदला गया, इन्हें इनकी उद्दात महत्वाकांक्षाओं की भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है, पर दिल है की मानता नहीं, न तो इन्होंने पेजथ्री पार्टियों में झिलमिलाना छोड़ा और न ही सदैव चर्चा में बने रहने की अपनी आदतों को ही विराम दिया। हद तो तब हो गई जब मंत्री जी ने एनडीएमसी को एक पत्र लिख कर दिल्ली के लूटियंस जोन स्थित अपने बंगले में एक स्वीमिंग पूल बनाने की इजाजत मांग ली। इसके पीछे तर्क देते हुए मंत्री जी ने अपने पत्र में कहा कि ’उनके डॉक्टरों ने खास कर उनके फीजियोथेरेपिस्ट ने उन्हें नियमित रूप से तैरने की सलाह दी है, इसीलिए वे अपने घर एक स्वीमिंग पुल बनवाना चाहते हैं।’ एनडीएमसी ने यह पत्र नगर विकास मंत्री के दफ्तर भेज दिया और वहां से वह पत्र पीएमओ के संज्ञान में लाया गया। फिर मंत्री महोदय तलब किए गए और उन्हें बताया गया कि ’इससे पहले भी दो नेताओं ने अपने सरकारी आवास पर स्वीमिंग पूल बनवाए थे, पर इसके बाद उन दोनों के राजनैतिक कैरियर भी उन्हीं पूल में बह गए। क्या आपने इस वाकये से कोई सीख नहीं ली है?’ मंत्री जी इस पर बेतरह झेंप गए, उन्होंने बचाव की मुद्रा अख्तियार करते हुए कहा कि ’इस पत्र के लिए वे बेहद शर्मिंदा हैं, क्योंकि उनकी जानकारी के बगैर ही उनकी पत्नी व बच्चों ने यह पत्र एनडीएमसी को भिजवा दिया था।’
महुआ मोइत्रा और निशिकांत दुबे के बीच जब से तलवारें तनी हैं और ’कैश फॉर क्वेरी’ का मामला सुर्खियां बटोर रहा है, लंबी चुप्पी के बाद इस बार ममता बनर्जी सामने आई हैं और वह भी महुआ के बचाव में। इससे पहले कयास लगाए जा रहे थे कि दीदी महुआ से इस बात को लेकर नाराज़ हैं कि इस तृणमूल सांसद ने दिल्ली में पार्टी के बजाए खुद को आगे बढ़ाया है। पर दीदी की सरकार ने आनन-फानन में पश्चिम बंगाल में ताजपुर पोर्ट को विकसित करने के लिए अडानी ग्रुप को दिए गए 25 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को रद्द कर इसका नया टेंडर जारी करने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही महुआ को भी नदिया जिले में पार्टी संगठन को मजबूत करने की महती जिम्मेदारी मिली है। पिछले दिनों जब महुआ कोलकाता में थीं तो अभिषेक बनर्जी ने उन्हें मिलने के लिए अपने घर बुलाया, महुआ फूल-मिठाई व केक लेकर अभिषेक के घर पहुंची और नदिया जिले की जिम्मेदारी दिए जाने के लिए उनका आभार जताया। अभिषेक ने इस बातचीत में महुआ से साफ-साफ कहा-’पार्टी एक परिवार की तरह होती है और परिवार में हर सदस्य की भूमिकाएं बदलती रहती हैं, सो सदस्य को पार्टी जो भी जिम्मेदारी दे उसे सहर्ष स्वीकार कर इसे एक चुनौती की तरह लेना चाहिए।’ इशारों ही इशारों में अभिषेक ने महुआ को बता दिया कि ’कोई जरूरी नहीं कि उन्हें हर बार लोकसभा का चुनाव ही लड़वाया जाए, उन्हें पार्टी संगठन की सेवा में भी भेजा जा सकता है’, समझदार के लिए इशारा काफी है।
अपनी राजनैतिक निर्वासन की पीड़ा झेल रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक मौजूदा हालात से बेहद परेशान हैं, इसके निवारण के लिए पिछले दिनों वे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने जा पहुंचे और बातों ही बातों में उन्होंने राजनीति के चाणक्य को अपनी बातों से बरगलगाने की कोशिश की, कहा-’उत्तराखंड में सब ठीक नहीं चल रहा है, वहां मुख्यमंत्री नौसिखयों की तरह सरकार चला रहे हैं, सो वहां सरकार में ऐसे चेहरों को शामिल करना चाहिए जिससे सरकार का चेहरा फ्रेश लगे व शासन चलाने में निपुणता आए।’ शाह ने मुस्कुराते हुए निशंक की हर शिकायत पर कान धरे और उनसे कहा-’अब जरा आप सुझाव दीजिए कि आपकी सीट पर हमें क्या नया करना चाहिए?’ थोड़े हडबड़ा गए निशंक, अटकते लफ्जों में कहा-’मेरी सीट पर इस बार मुकाबला हरीश रावत से होगा, लड़ाई कठिन होगी।’ शाह ने चुटकी लेते हुए कहा कि ’फिर तो आपकी सीट पर भी हमें कोई नया व फ्रेश चेहरा ही उतारने की सोचना होगा।’ इस बात का निशंक के पास कोई माकूल जवाब नहीं था।
सियासी बियावां में डाले जाने के बावजूद गांधी परिवार के एक और देदीप्यमान चिराग वरुण गांधी भी नेपथ्य के धूलकणों से अपने ललाट पर सुर्खियां लिखना और बटोरना जानते हैं, भाजपा के सांसद होने के बावजूद भी वह किसानों व नौजवानों के लिए खुल कर अपनी बात रखने के जाने जाते रहे हैं। अभी पिछले दिनों पीलीभीत की कई जनसभाओं में उनका एक शेर सुर्खियों की सवारी गांठता रहा, अर्ज किया है-
’तेरी मोहब्बत में हो गए फ़ना
मांगी थी नौकरी, मिला आटा, दाल चना’। सोशल मीडिया पर उनका यह शेर कुछ इस कदर वायरल हुआ कि आनन-फानन में इसे 19 करोड़ इम्प्रेशन मिल गए, तेलांगना से लेकर राजस्थान की चुनावी सभाओं में इस शेर का जम कर इस्तेमाल हुआ, तेलांगना में कांग्रेसी नेताओं ने इसे चंद्रशेखर राव के खिलाफ इस्तेमाल किया वहीं राजस्थान में इसे सीएम गहलोत के खिलाफ इस्तेमाल किया गया। विद्रोही स्वर की तान छेड़ने वाले वरुण का यह षेर क्या दिल्ली के निज़ाम की ओर भी इशारा कर रहा है? (एनटीआई-gossipguru.in)
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर की पैसों के कथित लेन-देन को लेकर कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, अब इस पूरे मामले के सूत्रधार को ढूंढा जा रहा है। पहला शक तो कमलनाथ पर था, क्योंकि कांग्रेस को इस वायरल वीडियो से चुनाव में काफी फायदा मिलने वाला था। पर तोमर से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि ’इस वीडियो को वायरल कराने में प्रदेश के भाजपा नेताओं के भी हाथ हो सकते हैं।’ इस कड़ी में शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम लिए जा रहे हैं। अगर राज्य में भाजपा की वापसी होती है तो सीएम पद के लिए तोमर ही शिवराज के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। वहीं ज्योतिरादित्य भी ग्वालियर चंबल संभाग में अपने लिए कोई नई चुनौती नहीं चाहते हैं। सूत्रों की मानें तो इस बार भाजपा शीर्ष ने दतिया विधानसभा क्षेत्र से ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी मैदान में उतारने का मन बनाया था। महाराज बमुश्किल भाजपा शीर्ष को यह समझाने में कामयाब रहे कि ’उनकी जगह उनके लोगों को टिकट दे दी जाए।’
बसपा नेत्री मायावती को पूरा भरोसा है कि इन पांच राज्यों के चुनाव में भी कम से कम दो राज्यों में उनकी पार्टी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहेगी, जैसे मध्य प्रदेश के ग्वालियर चंबल संभाग की जिस सीट पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लड़ रहे हैं, वहां की बसपा प्रत्याशी ने सबको पानी पिला रखा है। तोमर इस लड़ाई में पिछड़ते नज़र आ रहे हैं। मायावती को भी अपने कैडर से लगातार यह रिपोर्ट प्राप्त हो रही है कि ’अगर 2024 के चुनाव में उन्हें अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाए रखना है तो उन्हें यूपी में सपा या कांग्रेस या फिर दोनों दलों के साथ गठबंधन करना ही होगा।’ 15 जनवरी को बहिन जी का बर्थडे आता है, इस बार भी उनके जन्मदिन को बडे़ जोर-शोर से मनाने की तैयारी है, उम्मीद जताई जा रही है कि उनके बर्थडे को सेलिब्रेट करने के लिए अखिलेश व राहुल गांधी दोनों ही नेता आ सकते हैं। कम से कम अखिलेश का आना तो पक्का ही माना जा रहा है। इस दौरान अखिलेश की अपनी बुआ के संग वन-टू-वन बातचीत हो सकती है, सूत्र बताते हैं कि अगर इस मौके पर गठबंधन का कोई फार्मूला बन भी जाता है तो बहिन जी इसकी घोषणा मार्च में ही करेंगी, ताकि सत्तारूढ़ भाजपा के अतिरिक्त दबाव से बचा जा सके।
बिहार में राजद व जदयू दोनों ही दल इन दिनों ओबीसी जातियों के प्रेम में आकंठ डूबे हैं, इसे देखते हुए प्रदेश की अगड़ी जातियों में स्वतः ही एक नाराज़गी पनपने लगी थी, यह ग्राउंड रिपोर्ट जैसे ही बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मिली उन्होंने आनन-फानन में पटना स्थित अपने आवास पर पार्टी के अगड़े नेताओं की एक अहम बैठक बुला ली और उन्होंने उनके उग्र तेवर को शांत करने के लिए अपनी ओर से कुछ अहम प्रस्ताव रखे। माना जाता है कि तेजस्वी ने इन अगड़े नेताओं से वादा किया है कि ’2024 के चुनाव में वे अगड़ी जातियों को पर्याप्त महत्व और टिकट देंगे।’ उन्होंने कहा कि ’यह पहली बार होगा जब राजद किसी भूमिहार नेता को जहानाबाद से मैदान में उतारेगा, दरभंगा से किसी ब्राह्मण नेता को टिकट मिलेगा और राज्य के कम से कम 4 लोकसभा सीटों पर राजपूत उम्मीदवार उतारे जाएंगे।’ तेजस्वी ने जोर देकर इन अगड़े नेताओं से कहा कि ’राजद व जदयू दोनों ही दल अगड़ी जातियों को साथ लेकर चलेंगे क्योंकि ये जातियां चाहे संख्या बल में कम ही क्यों न हो, ये अन्य जातियों के मतदाताओं को भी प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं।’ वहीं लालू व नीतीश में बिहार की 40 लोकसभा सीटों के अनौपचारिक बंटवारे ने कांग्रेस का धर्मसंकट बढ़ा दिया है। सूत्रों की मानें तो लालू व नीतीश ने तय कर लिया है कि ’राजद व जदयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। चार सीट वे कांग्रेस के लिए छोड़ेंगे, एक सीट भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के लिए और एक सीट माले के लिए होगी।’ वहीं कांग्रेस के कम से कम 8-10 नेता टिकट के लिए प्रबल दावेदारी पेश कर रहे हैं।