फितरतों के समंदर में दोनों ने साथ डुबकी लगाई है’इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने भगवा पेशानियों पर गुमान की वो चंद रेखाएं खींच दी हैं जिससे मिल कर 2024 का चुनावी चेहरा आकार पाने लगा है, भाजपा रणनीतिकारों ने अपने पराक्रम से ‘मंडल‘ व ‘कमंडल’ दोनों ही राजनीति को एक साथ साधने की बाजीगरी दिखाई है। तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्रियों के ऐलान में जहां जातीय संतुलन को साधने की बाजीगरी हुई है, वहीं आने वाले नए वर्ष को भक्ति रस में सराबोर करने की पुरजोर तैयारी है। इस 22 जनवरी को अयोध्या में पीएम के करकमलों से ऐतिहासिक राम मंदिर का उद्घाटन होना है, वहीं इसके अगले ही महीने यानी फरवरी में पीएम आबूधाबी में बन रहे भव्य हिंदू मंदिर का उद्घाटन करेंगे। संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी आबूधाबी से लगे इस भव्य मंदिर के निर्माण में ही 700 करोड़ रूपयों का खर्च आया है। इस मंदिर का निर्माण ’बोचासनवासी अक्षर पुरूषोतम स्वामिनारायण संस्था’ के द्वारा किया गया है। 10 फरवरी से यहां ’फेस्टिवल ऑफ हारमनी’ की शुरूआत होगी और फिर 14 फरवरी को पीएम मोदी द्वारा इस मंदिर का उद्घाटन किया जाएगा। इसके अलावा अयोध्या के राम मंदिर का प्रसाद घर-घर वितरित करने की भी बड़ी योजना है, भाजपा विरोधी दलों के समक्ष भक्ति की शक्ति का नज़ारा प्रस्तुत करने का इरादा रखती है।
मध्य प्रदेश की कमान एक यादव नेता को सौंप कर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। इस उपक्रम से पार्टी ने बिहार व यूपी के यादवों को भी एक साफ संदेश दिया है। मोहन यादव के शपथ ग्रहण समारोह वाले स्थल को पीएम मोदी की योजनाओं वाले पोस्टरों से पाट दिया गया था, पर इन पोस्टरों में से शिवराज की ‘लाडली बहना योजना’ नदारद थी। एक तरह से शिवराज सिंह चौहान की पूरी उपस्थिति को ही दरकिनार कर दिया गया था। इस शपथ ग्रहण समारोह को एक योजनाबद्ध तरीके से यूपी व बिहार के यादव बाहुल्य इलाकों में बड़े-बड़े स्क्रीन लगा कर इसे लाइव दिखाया गया। यानी भाजपा शूरवीरों ने रणनीति बना कर लालू व अखिलेश के यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी कोशिश की, पर सवाल यही सबसे बड़ा है कि क्या बिहार व यूपी के यादव मध्य प्रदेश के यादव नेता के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार हैं? वहीं दबे-छुपे तौर पर यह भी सुनने को मिल रहा है कि 2024 के आम चुनाव के बाद मोहन यादव ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए अपनी गद्दी खाली कर देंगे। सियासत हर शै रंग बदलती है और निष्ठाएं भी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि मोहन की मुरलिया क्या नई धुन छेड़ती है।
कांग्रेस में मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की हार की जिम्मेदारी लेने के लिए कोई नेता सामने नहीं आ रहा है? प्रभारी के तौर पर दिल्ली से भेजे गए वे नेता गण भी बगलें झांक रहे हैं, जिनकी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती थी, क्योंकि टिकट बंटवारे में इन दिल्ली के सुल्तानों ने अपनी मनमानी दिखाई, टिकट बंटवारे की अनियमिताओं को लेकर खूब शोर भी उठे, पर ये आवाजें दिल्ली तक नहीं पहुंच सकी। छत्तीसगढ़ में टिकट बंटवारे में सैलजा की तथा मध्य प्रदेश में रणदीप सुरजेवाला की सबसे ज्यादा चली। कांग्रेस टिकट चाहने वाले अभ्यर्थियों ने इन दोनों ही नेताओं पर कई गंभीर आरोप भी लगाए, पर इनकी आवाज नक्कारखाने में तूती ही साबित हुई। दिल्ली के इन दोनों बड़े नेताओं ने यह कह कर अपना दामन बचाने की कोशिश की है कि इन दोनों प्रदेशों में भले ही कांग्रेस की सीटें कम आई हों पर पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ गया है। पार्टी के हलकों में इस बात पर भी चर्चा गर्म है कि जब छत्तीसगढ़ में भाजपा चाणक्य अमित शाह कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए राज्य के पूर्व सीएम अजित जोगी के पुत्र अमित जोगी की पार्टी में खाद-पानी डालने का काम कर रहे थे तो इसकी काट की तौर पर सैलजा ने वहां क्या किया? पुलिस के कुछ बड़े अधिकारियों की मदद से भाजपा बस्तर संभाग में आदिवासी मतदाताओं को रिझाने का प्रयास कर रही थी तो कांग्रेस प्रभारी के पास इसकी क्या काट थी? इन प्रभारियों को सजा के बदले अब कांग्रेस हाईकमान पुरस्कृत करने जा रहा है, सैलजा व सुरजेवाला दोनों का गृह क्षेत्र हरियाणा है। सो, हरियाणा के आने वाले विधानसभा चुनाव में इन दोनों नेताओं को महती जिम्मेदारी देने पर विचार हो रहा है, भूपिंदर हुड्डा इस आइडिया से नाखुश बताए जाते हैं, पर कांग्रेस एक ऐसी पॉलिटिकल पार्टी है जो अपनी गलतियों से कभी कोई सबक नहीं लेती।
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यह संसद पर आतंकी हमले की 22वीं बरसी थी, सनद रहे कि 13 दिसंबर 2001 को आतंकवादियों द्वारा संसद भवन पर हमला हुआ था, जिसमें हमारे कई सुरक्षा जवान शहीद हो गए थे। इस 22वीं हमले की बरसी को कवर करने के लिए मीडिया वालों को सुबह 10 से 12 बजे तक पास दिया गया था। सबसे पहले पहुंचने वालों में सोनिया गांधी व राजीव शुक्ला जैसे नेतागण थे, अमित शाह, प्रह्लाद जोशी भी समय पर पहुंच चुके थे। ये भी एक तरफ खड़े थे, फिर प्रधानमंत्री का आगमन होता है इसके बाद उप राष्ट्रपति का आगमन होता है, मान्य परंपराओं के मुताबिक सबसे पहले सलामी बिगुल बजता है और तब उद्घोषणा होती है, तब नेता गण एक-एक कर शहीदों को ‘रीथ’ यानी फूल माला अर्पित करते हैं। उप राष्ट्रपति धनखड़ के वहां पहुंचते ही नेताओं की एक लाइन लग गई, अभी बिगुल बजता इसमें पहले ही हड़बड़ी में उप राष्ट्रपति ने शहीदों को रीथ अर्पित कर दी। स्वयं पीएम, शाह व सोनिया इस दृश्य को देखते रहे। पीएम आए तो वे राजीव शुक्ला से भी घुल मिल कर बात करते दिखे व सोनिया गांधी से भी। फिर पीएम ने उप राष्ट्रपति को भी अकेले में लेजा कर उनसे कुछ महत्वपूर्ण बातें कीं।
कांग्रेस में एक बड़े फेरबदल की आहट है। सुना जा रहा है कि राहुल गांधी राज्यों के बड़े क्षत्रपों को दिल्ली लाना चाहते हैं और उनकी जगह अपेक्षाकृत युवा नेताओं को वहां की बागडोर सौंपना चाहते हैं। माना जाता है कि इस कड़ी में अशोक गहलोत व भूपेश बघेल जैसे स्थापित नेताओं को दिल्ली लाया जा सकता है और इन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है। आने वाले कुछ समय में अशोक गहलोत को पार्टी के राष्ट्रीय कोशाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मिल सकती है। कमलनाथ फिलवक्त दिल्ली आने को तैयार नहीं है, पर राहुल मध्य प्रदेश में भी पार्टी की कमान अपेक्षाकृत किसी युवा नेता को सौंपना चाहते हैं। दिग्विजय सिंह खड़गे की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं, वे खड़गे को याद दिलाना चाहते हैं कि ’उन्होंने खड़गे की अध्यक्षीय उम्मीदवारी के खिलाफ अपना पर्चा नहीं भरा था, अब दिग्विजय इसका इनाम चाहते हैं।’
पिछले माह बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह की पुत्री आकृति का विवाह समारोह नई दिल्ली में संपन्न हुआ। कांग्रेस के चंद बड़े नेताओं का जमावड़ा वहां दिखा, आए तो गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा भी, पर गांधी परिवार के किसी व्यक्ति की उपस्थिति उस समारोह में नहीं देखी गई, न तो सोनिया, न राहुल और न ही प्रियंका को वहां देखा गया। हां, लालू यादव पूरे समय उस समारोह में मौजूद रहे। तारिक अनवर लालू के बगलगीर थे, इन दोनों नेताओं के बीच कोई खास बातचीत नहीं हो रही थी। इस बीच बिहार कांग्रेस के एक पुराने नेता श्याम सुंदर धीरज वहां पहुंचे, लालू ने उन्हें बुला कर अपने दाएं तरफ बिठा लिया और उनसे हंस-हंस कर बातें करते नज़र आए।
घर लौटते परिदों के कतारों में ही कहीं मेरा भी वास है’
किस्सा कुछ पुराना है, पर संदर्भ नया। दिल्ली से बिल्कुल लगे हुए राज्य से ताल्लुक है इन मंत्री जी का। पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं सो राज्य में उस जाति विशेष के संतुलन को साधने के लिए इन्हें केंद्र में मंत्री बना दिया गया, पिछली सरकार में मंत्री बनवाने में इन्हें एक प्रमुख महिला नेत्री का सहयोग मिला था, वह भी उसी राज्य से ताल्लुक रखती थीं। वह महिला नेत्री नहीं रहीं, पर नेताजी 19 की नई सरकार में भी जगह पा गए। मंत्री जी की लेन-देन की प्रवृत्ति की भनक पीएमओ के कान में पड़ती रही और समय-समय पर इनका विभाग भी बदला जाता रहा। मंत्री जी के निर्वाचन क्षेत्र में पिछले दिनों एक बड़े अस्पताल व मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन स्वयं प्रधानमंत्री के कर कमलों से हुआ। यह अस्पताल दक्षिण की एक प्रमुख अध्यात्मिक गुरू से जुड़ा है जिनके पीएम से सीधे रिश्ते बताए जाते हैं और पीएम इनका आदर भी बहुत करते हैं। अब चूंकि मंत्री जी के निर्वाचन क्षेत्र में इस 2600 बेड के अस्पताल का निर्माण कार्य चल रहा था सो, अस्पताल प्रबंधन के पास मंत्री जी के लोगों की वसूली की कॉल चली गई, अस्पताल प्रबंधन अब तलक इसे क्षेत्र के लोगों के लिए एक परोपकार का कार्य मान रहा था, पर ऐसी मांगों से वे हैरत में पड़ गए। प्रबंधकों ने आनन-फानन में इस बात की सूचना अपने शीर्ष गुरू तक पहुंचा दी, शीर्ष गुरू ने भी इस मामले का संज्ञान लेते हुए यह पूरा माजरा पीएम को बता दिया। चूंकि पीएम के इस शीर्ष गुरू से बहुत अच्छे निजी रिश्ते हैं, और भाजपा भी दक्षिण में पार्टी का आधार बढ़ाने में जुटी है, सो इस मामले को गंभीर माना गया, मंत्री जी को बुला कर फटकार लगाई गई और अब पार्टी में भी मंत्री जी के विरोधियों को तरजीह दी जाने लगी है, सुना तो यह भी जा रहा है कि 24 में मंत्री जी का टिकट कटना लगभग तय ही है।
उत्तरकाशी के सिल्क्यारा निर्माणाधीन टनल में 17 दिनों से फंसे 41 श्रमिकों को बाहर निकालने में आस्ट्रेलिया मूल के एक अंतरराष्ट्रीय टनल एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स की एक महती भूमिका रही। सूत्र बताते हैं कि जब भारत सरकार की ओर से इन मजदूरों को बाहर निकालने के लिए इन आस्ट्रेलियाई विशेषज्ञ से संपर्क साधा गया था तब ये स्लोवेनिया में थे और उन्हें वहां से तीन दिन के लिए एक कांफ्रेंस में शामिल होने के लिए मुंबई आना था। सो, अर्नोल्ड अपनी टिकट पर तुरंत फुरत मुंबई आ गए, जहां से उन्हें सरकार उत्तरकाशी ले गई। लगातार 12 दिनों तक अर्नोल्ड वहीं उत्तरकाशी में जमे रहे और मजदूरों को बाहर निकालने के प्रयासों में जुटे रहे। चूंकि माईंस की देवी मां काली को माना जाता है, सो अर्नोल्ड भी नियम से मां काली की पूजा करते थे और नए उत्साह से लबरेज हो कर अपने मिशन में जुट जाते थे। सूत्रों की मानें तो टनल के पास ही स्थित बाबा बौखनाग के मंदिर में वहां के पुजारियों द्वारा अर्नोल्ड ने विधिवत रूप से एक बड़ी पूजा भी करवाई थी। जब 17 दिनों बाद इन मजदूरों को सफलतापूर्वक व सुरक्षित उस सुरंग से बाहर निकाला गया तब तक अर्नोल्ड के स्लोवेनिया वापिस लौटने की टिकट कैंसिल हो चुकी थी, क्योंकि वापसी कब होगी इसका कुछ पता नहीं था। अब इस सफल मिशन के बाद अर्नोल्ड अपने एक मित्र की मदद से नई दिल्ली के अशोक होटल में टिके हुए हैं, उनकी वापसी की टिकट का पैसा कौन देगा इस पर अब भी सस्पेंस बना हुआ है, अर्नोल्ड को उम्मीद है कि इस मामले में पीएमओ हस्तक्षेप करेगा और वह या तो मंत्रालय से या फिर एनडीआरएफ से कहेगा कि उनकी वापसी की टिकट बुक कराई जाए। कम से कम किसी हीरो के साथ तो यह सुलूक नहीं होना चाहिए।
जब से केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय से मुख्तार अब्बास नकवी की विदाई हुई है यह मंत्रालय अपनी किस्मत पर रो रहा है। कयास तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि 2024 में अगर मोदी सरकार की वापसी होती है, जिसकी बहुत कुछ संभावनाएं दिख रही हैं, तो फिर इस मंत्रालय पर हमेशा के लिए ताला लटक सकता है। इसकी शुरूआत अभी से हो चुकी है। सूत्र बताते हैं कि मंत्रालय के दो पीएसयू को बंद करने की पूरी तैयारी हो चुकी है, इनमें से एक है ’मौलाना आजाद एकेडमी ऑफ स्कीम्स’ दूसरा है ’मौलाना आजाद एजुकेशन फाऊंडेशन’। साथ ही ‘सेंट्रल वक्फ काउंसिल‘ को भी बंद करने की तैयारी है। जब से इस मंत्रालय से नकवी की विदाई हुई है, उनके साथ जुड़े अधिकारी गण जो मंत्रालय की विभिन्न स्कीम देखते थे, वे लगभग खाली बैठे हुए हैं, उन्हें दूसरे कार्यों में नहीं लगाया गया है, कई कर्मचारी जो कांट्रेक्ट पर थे उन्हें बाहर का दरवाजा दिखा दिया गया है। अधिकारियों को विभिन्न मंत्रालयों में एडजस्ट करने पर विचार हो रहा है। सच्चर कमेटी की सिफारिशों के अनुमोदन के लिए 2009 में मुस्लिम छात्रों की मदद के लिए ’मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप’ शुरू हुई थी, इसे 2022 में बंद कर दिया गया है। ’पढ़ो परदेस’ स्कीम पर भी तालाबंदी कर दी गई है। ’सबका साथ, सबका विकास’ के आह्वान के विरोधाभास में 2020-23 के मंत्रालय के बजट में 38 फीसदी की कमी कर दी गई, 2023-24 के बजट में 637 करोड़ की कमी की गई है, ये करोड़ों झिलमिलाते उम्मीदों की रोशनी को ही ग्रहण है? समावेशी भारत का सपना क्या ऐसे भला मुकम्मल हो पाएगा?
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वीके पांडियन ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के सबसे करीबियों में शुमार होते हैं, सनद् रहे कि पटनायक की परिवर्तनकारी व क्रांतिकारी मुहिम ’फाइव टी’ की नींव ओडिषा कैडर के 2000 बैच के आईएएस अधिकारी पांडियन ने ही रखी थी जो कि तमिलनाडु के मूल निवासी हैं। कहा जाता है कि ओडिशा में पांडियन का ऐसा सिक्का चलता था कि उनके इशारे के बगैर प्रशासन में पत्ता भी नहीं हिलता था। पर पांडियन की सियासी चाहत कुछ ऐसे परवान चढ़ी कि वे अपने पद से सेवा निवृत्ति लेकर बकायदा बीजद में शामिल हो गए। आनन-फानन में उन्हें ’नवीन ओडिशा’ का चेयरमैन बना कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया गया। चर्चा जोरों पर है कि नवीन पटनायक पांडियन को अपनी राजनैतिक विरासत सौंपने जा रहे हैं, पर इसमें एक बड़ी अड़चन यह है कि ओडिशा का सीएम भला एक दक्षिण भारतीय व्यक्ति कैसे हो सकता है? सो, समझा जाता है कि पांडियन ने इसकी एक काट ढूंढ निकाली है। वे अपनी पत्नी सुजाता कार्तिकेयन से जल्द ही इस्तीफा दिलवाने वाले हैं, सुजाता ओडिशा की ही मूल निवासी हैं, आईएएस हैं, और ’मिशन शक्ति’ की सेक्रेटरी हैं। सो, पांडियन की आगे की राजनीति अपनी पत्नी को आगे रख कर करने की है, वे नेपथ्य में रह कर सत्ता चलाने में वैसे भी माहिर हैं, संभवतः वे आगे भी यही करते रहना चाहेंगे।