इसी 15 जनवरी को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अपनी दो दिवसीय ईरान यात्रा पर तेहरान पहुंचे थे, जहां उनकी मुलाकात ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और वहां के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहयान से हुई। बातचीत का मसला चाबहार पोर्ट पर ही केंद्रित था जिसे भारत को नया रूप रंग देना था। ईरान के राष्ट्रपति इस प्रोजेक्ट में हो रही देरी से नाखुश बताए जाते हैं, उन्होंने दो टूक लहजे में जयशंकर से पूछा कि ’आप इस प्रोजेक्ट की डेडलाइन बताइए?’ सनद रहे कि ईरान के तटीय शहर चाबहार के विकास के लिए भारत व ईरान के बीच आज से दो दशक पहले 2003 में सहमति बनी थी, 2016 में इस समझौते को मंजूरी मिली थी। यह बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए इंटरनेशनल नार्थ-साउथ कोरिडोर के तौर पर काफी अहम है। पर इस बार भारत में आयोजित हुए जी-20 सम्मेलन में नए ट्रेड रूट बनाने पर सहमति बनी है जिससे भारत के लिए चाबहार आईएनएसटीसी और आईएमईसी में निवेश करना उतना आसान नहीं रह जाएगा। इससे पूर्व कुछ ऐसा ही श्रीलंका के हब्बन टोटा बंदरगाह को लेकर भी हुआ था, पहले भारत को ही इस पोर्ट को विकसित करना था, उस वक्त महिंद्रा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे और उनके भाई वहां के विदेश मंत्री। तब ये दोनों भाई एक चीनी डेलीगेट्स के संपर्क में आए और चीन ने हब्बनटोटा में दिलचस्पी दिखाई और भारत के हाथ से यह प्रोजेक्ट चला गया था जो पोर्ट रणनैतिक रूप से हमारे देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण था, क्या अब चाबहार भी उसी रास्ते चल निकला है? क्या इस प्रोजेक्ट पर भी चीन की नज़र है?
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’इक मुद्दत से कुछ बोले नहीं हो तुम, आओ तुम्हारे चुप लबों पर कुछ बातें रख दूं
एक वक्त गुजरा जो सोए नहीं हो तुम, आओ तुम्हारे जागते नैनों पर कुछ रातें रख दूं’
बोलती चुप्पियों से नए सियासी मिथक गढ़ने में गांधी परिवार का भी कोई सानी नहीं, दुनिया जानती है कि भाजपा में रह कर भी पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी के विचार व तेवर कई दफे पार्टी लाइन से मेल नहीं खाते, अटकलें पहले भी खूब लगी हैं कि वरुण गांधी पाला बदल कर अपने नैसर्गिक घर कांग्रेस का रुख कर सकते हैं, वक्त गुजरता रहा, पर इन कयासों को कोई मुकम्मल चेहरा हासिल नहीं हो पाया। सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपने छोटे भाई वरुण गांधी से फोन पर एक लंबी बात की और उनके समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि ’2024 का लोकसभा चुनाव वह कांग्रेस की टिकट पर अमेठी से लड़ जाएं, क्योंकि अमेठी उनके स्वर्गीय पिता संजय गांधी की पसंदीदा और परंपरागत सीट में शुमार रही है।’ पर सूत्रों का कहना है कि वरुण ने अपनी बहन के इस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया। समझा जाता है तब प्रियंका ने उन्हें मनाते हुए कहा कि ’वे अमेठी से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ जाएं कांग्रेस व सपा जैसी पार्टियां उन्हें अपना समर्थन दे देंगी।’ पर वरुण ने कहा कि वे पीलीभीत छोड़ कर अन्यत्र कहीं और जाना नहीं चाहते, क्योंकि पिछले कई सालों से उन्होंने पीलीभीत की जनता के लिए अपना खून पसीना बहाया है, यहां के लोगों के साथ उनका एक दिल का रिश्ता कायम हुआ है, जिसे वे तोड़ना नहीं चाहते। दरअसल, इस दफे अमेठी और रायबरेली से न सोनिया, न राहुल और न ही प्रियंका चुनाव लड़ना चाहते। इस बात की पहली सुगबुगाहट तब मिली जब रायबरेली के सांसद प्रतिनिधि किशोरी लाल से गांधी परिवार की ओर से कहा गया कि वे रायबरेली छोड़ कर कहीं और की जिम्मेदारी ले लें। दरअसल, अमेठी व रायबरेली इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस पार्टी की ओर से एक जनमत सर्वेक्षण करवाया गया था और सर्वेक्षण के नतीजों में बताया गया कि अमेठी व रायबरेली ये दोनों ही सीट राहुल व प्रियंका के चुनाव लड़ने के लिए सुरक्षित नहीं है, इसके बाद ही प्रियंका ने अपने छोटे भाई वरुण की ओर रुख किया।
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पिछले सप्ताह प्रियंका गांधी सवेरे-सवेरे एक प्राइवेट जेट से हैदराबाद जा पहुंची, जहां उनकी तेलांगना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी से अकेले में एक लंबी बातचीत हुई। कहते हैं फिर वह उसी जेट से सीधे शिमला आ गईं। शिमला में उनकी मुलाकात वहां के सीएम सुक्खी, कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रतिभा सिंह और मुकेश अग्निहोत्री के साथ हुई। इसके बाद ही पार्टी में इस बात पर सहमति बनी कि सोनिया व प्रियंका दोनों ही नेत्री लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी, पार्टी सोनिया को तेलांगना से और प्रियंका को हिमाचल से राज्यसभा में भेजेगी।
जैसे-जैसे लोकसभा चुनावों की घड़ी पास आ रही है, नेताओं के पाला बदलने का मौसम भी शुरू हो गया है। भाजपा शीर्ष से जुड़े एक विश्वस्त सूत्र के दावे पर अगर यकीन किया जाए तो भगवा पार्टी की ओर से कांग्रेस के कम से कम 15 बड़े नेताओं की एक लिस्ट पीएम मोदी को सौंपी गई है, जो नेतागण भाजपा में प्रवेश के लिए भगवा द्वार पर दस्तक दे रहे हैं। यह अब पूरी तरह पीएम मोदी पर निर्भर करता है कि इनमें से किन नेताओं को वह अपनी पार्टी में लेना चाहते हैं। सूत्रों का दावा है कि इस लिस्ट में आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर, कार्ति चिदंबरम जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं। कर्नाटक में भी जगदीश शेट्टार की भाजपा में घर वापसी के बाद बेल्लारी के चर्चित जर्नादन रेड्डी के भी भाजपा में वापिस आने के चर्चे गर्म हैं।
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हालिया दिनों में भाजपा ने मध्य प्रदेश व राजस्थान में अपना एक अभिनव प्रयोग किया था जिसमें पार्टी ने अपने कई मौजूदा सांसदों को विधायकी के चुनाव लड़वा दिए थे, जो हारे सो किनारे, जो जीते उनमें से कई मंत्री व स्पीकर भी बना दिए गए। पार्टी अब यही प्रयोग हरियाणा में भी दुहराना चाहती है। भाजपा को लगता है कि इस छोटे से राज्य में उन्हें मोदी व श्री राम के नाम पर अपने सांसदों को जिताने में कोई परेशानी नहीं आ रही पर विधानसभा चुनाव में मुकाबला कड़ा है, सो, भाजपा के लिए यहां विधानसभा की एक-एक सीट महत्वपूर्ण हो गई है। जैसे भिवानी महेंद्रगढ़ की लोकसभा सीट पर केद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को चुनाव लड़वाने का फैसला हो सकता है, जहां से मौजूदा सांसद धर्मवीर सिंह हैं, इसके अलावा फरीदाबाद के सांसद कृष्णपाल गुर्जर, रोहतक के अरविन्द शर्मा व सोनीपत के सांसद रमेश चंद्र कौशिक से भी विधानसभा चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है। पर धर्मवीर सिंह समेत कई मौजूदा सांसद विधानसभा का चुनाव लड़ने से मना कर रहे हैं, इनका कहना है कि ’हमने राजस्थान-मध्य प्रदेश में अपने साथी सांसदों का हश्र पहले ही देख लिया है।’
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दिल्ली के भी तमाम मौजूदा सांसदों को बदलने की तैयारी है, इन सांसदों ने भी अभी से अपने लिए नई सीटों की तलाश शुरू कर दी है। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने हरियाणा जाने में अनिच्छा जताई है, वे हरियाणा के जगह यूपी के बिजनौर से चुनाव लड़ना चाहते हैं, मनोज तिवारी बिहार के बक्सर का रुख कर सकते हैं, तो हंसराज हंस को पंजाब भेजा जा सकता है, गौतम गंभीर जैसे नेताओं के पर कुतरे जा सकते हैं, मुमकिन है कि उन्हें लोकसभा या फिर विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका ही न मिले, दक्षिण दिल्ली के सांसद रमेश बिधुड़ी की नज़र गौतमबुद्ध नगर की सीट पर है, इसी सीट पर एक और गुर्जर नेता नरेंद्र भाटी का भी दावा है, पर सूत्रों की मानें तो संघ यहां से महेश शर्मा को ही ‘बैक’ कर रहा है, जो यहां के मौजूदा सांसद हैं, महेश शर्मा ने गौतमबुद्ध नगर से चुनावी तैयारियां भी शुरू कर दी हैं।
’ऑपरेशन नीतीश’ को मुकम्मल करने में इस दफे दो बड़े नौकरशाहों की एक अहम भूमिका बताई जाती है। इनमें से एक नीतीश के कभी निजी सचिव और बेहद दुलारे रहे चंचल कुमार हैं, जो वर्तमान में ‘नार्थ ईस्ट क्षेत्रीय विकास मंत्रालय’ के सचिव हैं, मोदी सरकार इन्हें एक बहुत ही सुविचारित तरीके से 2022 में ही बिहार से दिल्ली लेकर आई थी और तब इन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय में सचिव बनाया गया था। दूसरे अधिकारी पीएमओ में कार्यरत अमित खरे हैं, जो प्रधानमंत्री के सलाहकार भी हैं। ऑपरेशन नीतीश में इन दोनों अधिकारियों ने अपना पूरा योगदान दिया, सबसे पहले लालू के करीब जा चुके लल्लन सिंह को जदयू के अध्यक्ष पद से हटाया गया और पार्टी की कमान नीतीश ने अपने हाथों में ले ली। फिर जदयू के विधायकों को एक-एक कर समझाया गया कि ’भाजपा के साथ जाने से उन्हें आने वाले चुनाव में राम लहर पर सवार होने का मौका मिलेगा।’ वहीं पॉलिटिकल मैनेजमेंट संभालने में केसी त्यागी ने अमित शाह के समन्वयन में सारे कार्यों की पूर्णाहूति दी। केसी त्यागी नियमित तौर पर गृह मंत्री से मिल कर उनके साथ रणनीतियां बुन रहे थे।
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