प्रशांत किशोर अपनी अचूक चुनावी रणनीति के लिए जितने मशहूर हैं उससे ज्यादा ख्यात हैं अपने बड़बोलेपन के लिए। पिछले दिनों हैदराबाद के एक पंचतारा होटल की लॉबी में बैठ कर वे अपने स्पीकर फोन पर किसी से बतिया रहे थे। दूसरी तरफ वाला व्यक्ति उनसे पूछ रहा था कि ’अभी तक आप जगन के लिए काम रहे थे, अब चंद्रबाबू के लिए कर रहे हैं।’ कहते हैं इस पर पीके ने ऊंचा फेंकते हुए कहा-’क्या करूं, मेरा एक पैर नायडू ने पकड़ रखा है तो दूसरा जगन ने।’ उसी होटल की लॉबी में साथ वाले सोफा पर चंद्रबाबू नायडू के पुत्र नारा लोकेश का एक अभिन्न मित्र बैठा था जो पीके की सारी बातें सुन रहा था। उसने फौरन नारा को फोन कर यह सारी बातें बताईं। उसी वक्त आग-बबूला होते नारा ने पीके को फोन किया और कहा कि ’हम रिश्ता रखते हैं सो आप रिश्ते की कद्र करें और बिलावजह अनर्गल प्रलाप न करें।’
भाजपा ने इन चुनावों में ऐसी 18 प्रमुख सीटों को चिन्हित किया है जहां येन-केन प्रकारेण किसी भी तरह पार्टी उम्मीदवार का जीतना जरूरी है। इन 18 सीटों को ’कोड ब्ल्यू’ का नाम दिया गया है। भले ही इन 18 सीटों पर संघर्ष कड़ा है पर भाजपा और संघ कैडर यहां अपना पूरा दम दिखा रहा है। पिछले सप्ताह भाजपा के शीर्ष नेताओं, जिसमें अमित शाह और जेपी नड्डा भी शामिल थे और संघ के कुछ प्रमुख पदाधिकारियों की एक अहम बैठक हुई। कहते हैं इस बैठक में यह तय हुआ कि ’इन 18 सीटों को हर हाल में जीतना जरूरी है। सो, इन सभी 18 सीटों पर संघ और भाजपा के नेता ’डोर-टू-डोर’ प्रचार करेंगे, सोशल और डिजिटल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल होगा और किसी भी स्थिति में संसाधनों की कमी नहीं होने दी जाएगी।’ सूत्र बताते हैं कि ’कोड ब्ल्यू’ की सीटों में सबसे अव्वल मंडी को रखा गया है, जहां से बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत चुनावी मैदान में हैं। इसके बाद अमेठी का नंबर आता है जहां से प्रमुख भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी का मुकाबला गांधी परिवार के वफादार केएल शर्मा से है। इसके अलावा इसमें गुजरात के राजकोट की सीट भी शामिल है, जहां से मोदी दुलारे परूषोतम रूपाला चुनावी मैदान में हैं जो हाल के अपने विवादास्पद बयानों को लेकर चर्चा में हैं। असदुद्दीन ओवैसी पर भले ही भाजपा के ‘छुपा दोस्त’ होने के आरोप लगते रहे हैं, पर हैदराबाद में भाजपा ने उन्हें हराने की चाक-चौबंद तैयारी कर रखी है। भाजपा अपनी उम्मीदवार माधवी लता के लिए यहां अपना पूरा जोर लगा रही है।
ओडिशा में भले ही भाजपा और बीजू जनता दल का चुनाव पूर्व जाहिरा तौर पर गठबंधन नहीं हो पाया हो, पर खबर पक्की है कि अंदरखाने से दोनों दल कांग्रेस के खिलाफ मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं। शायद यही वजह है कि बीजद के शीर्ष नेता और राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक केवल विधानसभा क्षेत्रों में ही अपनी चुनावी सभाओं का फोकस रख रहे हैं। शायद यही वजह है जिन लोकसभा सीटों पर भाजपा दिग्गज चुनावी मैदान में उतरे हैं वहां नवीन पटनायक अपने अधिकृत प्रत्याशियों के ही चुनाव प्रचार में नहीं जा रहे। जैसे केंद्रपाड़ा से भाजपा के जय पांडा, पुरी से संबित पात्रा, संबलपुर से केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और वहीं सुंदरगढ़ से जुएल ओराव चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं, पर नवीन पटनायक की यहां जाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इन चुनावों में पटनायक करीबी पांडियन के सौजन्य से भाजपा और बीजद के बीच गठबंधन का मसौदा तय हो चुका था, पर नवीन पटनायक को ओडिशा के जमीनी सर्वे में यह पता चला कि ’अगर बीजद और भाजपा का गठबंधन होता है तो इसकी सबसे बड़ी लाभार्थी कांग्रेस रहेगी और कांग्रेस का वोट शेयर लगभग 25 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।’ सो, एक फार्मूला बना कि लोकसभा में भाजपा ‘लीड’ करेगी और अंदरखाने से उसे बीजद ‘सपोर्ट’ करेगी वहीं विधानसभा का चुनाव पूरी तरह बीजद के हिस्से में रहेगा। भाजपा का अपना सर्वे बता रहा है कि अगर इस ’फ्रेंडली फाइट’ का ग्राफ ठीक से परवान चढ़ा तो भाजपा ओडिषा की 21 में से 14 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करा सकती है।
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बिहार में भाजपा और जदयू गठबंधन के बीच तनाव साफ दिखने लगा है। सूत्रों की मानें तो जदयू के वरिष्ठ नेता राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह अपने कुछ मुंहलगे पत्रकारों संग बैठकी कर रहे थे, तो उनमें से एक पत्रकार ने उनसे पूछ लिया कि ’4 जून के बाद बिहार की तस्वीर कितनी बदलेगी।’ कहते हैं लल्लन सिंह ने बातों ही बातों में यह तुर्रा भी उछाल दिया कि ’भाजपा एक बड़ा मगरमच्छ है जो छोटी पार्टियों को लील जाता है।’ इसी बैठकी में मौजूद भाजपा परस्त एक पत्रकार ने चुपचाप लल्लन सिंह की इन बातों को अपने मोबाइल से रिकार्ड कर लिया और यह रिकॉर्डिंग किसी प्रकार भाजपा चाणक्य तक पहुंचायी गई। उसके बाद भाजपा चाणक्य ने सीधे लल्लन सिंह को फोन लगाया और उनसे कहा कि ’भाजपा अपने गठबंधन साथियों को आगे भी बढ़ाती है और उनकी रक्षा भी करती है। सो, प्लीज़ ऐसा कुछ नहीं बोले जिससे दोनों पार्टियों के आपसी सौहार्द्र पर फर्क पड़े।’
कांग्रेस के सीनियर नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हमेशा नई ऊर्जा से लबरेज रहते हैं। कांग्रेस ने उन्हें राजगढ़ लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा है। तो दिग्विजय ने अपनी अनोखी अदा से वहां भी समां बांध दिया है। वे एक ’वादा निभाओ पद यात्रा’ निकाल रहे हैं जिससे वे अपनी क्षेत्र की जनता से व्यक्तिगत रूप से मिल सकें। अभी पिछले दिनों जब वे राघोगढ़ में पद यात्रा कर रहे थे तो उनके साथ उनके पुत्र जयवर्द्धन सिंह और उनके साथ उनका 7 साल का पोता सहस्त्रजय सिंह भी शामिल था। सबसे दिलचस्प तो यह कि अपने दादा के लिए 7 साल का पोता भी वोट मांग रहा था जबकि चुनाव आयोग द्वारा चुनाव प्रचार में बच्चों और नाबालिगों को शामिल करने पर पूरी तरह रोक है।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने बेहद बारीकी से आम आदमी पार्टी पर अपनी नज़र बनाए रखी है। भगवा रणनीतिकारों का भरोसा था कि ’केजरीवाल के जेल जाने के बाद आप बिखर जाएगी और आप उम्मीदवारों के समक्ष चुनाव लड़ने के लिए धन का संकट पैदा हो जाएगा।’ पर इसके उलट कम से कम दिल्ली में आप को केजरीवाल की सहानुभूति लहर का फायदा मिलते दिख रहा है। केजरीवाल के जेल जाने के बाद आप के उम्मीदवार बेहद मजबूती से चुनावी मुकाबले में आते दिख रहे हैं। पर आप की असली चिंता इसके सेकंड नेतृत्व को लेकर है। केजरीवाल ने अपने जितने लोगों को राज्यसभा भेजा है उनमें से केवल संजय सिंह ही राजनीतिक मोर्चे पर सक्रिय नज़र आ रहे हैं, वो भी जेल से छूट कर आने के बाद। राघव चड्ढा अपनी आंखों के इलाज के सिलसिले में लंदन में हैं, तो स्वाति मालिवाल अपनी बहन का इलाज कराने के लिए अमेरिका चली गई हैं और बाकी जिनको केजरीवाल ने राज्यसभा से उपकृत किया है उनमें से ज्यादातर थैलीशाह हैं जिनका राजनीतिक सक्रियता से खास लेना-देना नहीं है। केंद्र सरकार भी फिलहाल दिल्ली की लहरें गिन रही है और यह थाह लगाने की कोशिश कर रही है कि मौजूदा परिस्थितियों में यहां राष्ट्रपति शासन लगाना कितना समीचीन रहेगा। वहीं आप अपने परिस्थितिजन्य संत्रासों से भविष्य का चेहरा मुकम्मल बनाने की कोशिशों में जुटी है।
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सियासत में रंगे सियारों की भी कोई कमी नहीं। कुछ दूर से पहचान भी लिए जाते हैं पर उनकी सियासी महत्ता इससे कम नहीं हो जाती। असद्द्दीन ओवैसी की ’एआईएमआईएम’ पार्टी को भले ही भाजपा की ’बी टीम’ कह लें पर यह खेल बिगाड़ने का माद्दा तो रखती ही है। ओवैसी ने ’अपना दल कमेरावादी’ की पल्लवी पटेल के साथ मिल कर यूपी में तीसरे मोर्चे का गठन किया है, जिसे वो ’पीडीएम’ का नाम दे रहे हैं। ’पीडीएम’ यानी पिछड़ा, दलित और मुसलमान। जबकि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इससे कहीं पहले ’पीडीए’ का नारा बुलंद कर दिया था ’पीडीए’ यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक। इस पर ओवैसी ने चुटकी लेते हुए कहा था ’क्या पता ये अल्पसंख्यक न होकर अगड़ा हो, सो हमने सीधे इसे मुसलमान से जोड़ दिया है।’ ओवैसी ’मैच फिक्सिंग’ का गेम खेलने यूपी में पहली बार 2017 विधानसभा चुनाव में आए, जब उन्होंने अपने 38 उम्मीदवार मैदान में उतारे। इत्तफाक देखिए इनमें से 37 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई पर फिर भी ओवैसी मुसलमानों के 2 लाख वोट सपा के खाते से काटने में कामयाब रहे। इसके बाद आया 2022 का विधानसभा चुनाव जिसमें ओवैसी ने 95 उम्मीदवार मैदान में उतारे जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गई और वे वोट ले आए 4 लाख और सपा के कई उम्मीदवार बेहद मामूली अंतर से चुनाव हार गए। यूपी में तकरीबन 19 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं और यहां की 80 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें वैसी हैं जहां 20 से 30 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। वहीं रामपुर, संभल जैसी लोकसभा सीटों पर तो 49 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। चूंकि ओवैसी को मुस्लिम वोट काट कर अपरोक्ष तौर पर भाजपा को ही फायदा पहुंचाना है सो उन्होंने यूपी में पहले चरण की 8 सीटें छोड़ दी है और अब वे संभल, मुरादाबाद, आज़मगढ़, बहराइच, फिरोजाबाद, बलरामपुर, कुशी नगर जैसी सीटों पर अपने मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं इससे ‘इंडिया गठबंधन’ के समक्ष एक महती चुनौती पेश हो रही है। सनद रहे कि इस बार सपा ने यूपी में अपने 46 घोषित उम्मीदवारों में से मात्र 3 मुस्लिम प्रत्याशियों को ही मैदान में उतारा है। सो, ओवैसी सीधे अखिलेश से पूछ रहे हैं कि ’क्या सपा ने मुसलमानों को केवल दरी बिछाने के लिए ही पार्टी में रखा है।’
’इक मुद्दत से कुछ बोले नहीं हो तुम, आओ तुम्हारे चुप लबों पर कुछ बातें रख दूं
एक वक्त गुजरा जो सोए नहीं हो तुम, आओ तुम्हारे जागते नैनों पर कुछ रातें रख दूं’
बोलती चुप्पियों से नए सियासी मिथक गढ़ने में गांधी परिवार का भी कोई सानी नहीं, दुनिया जानती है कि भाजपा में रह कर भी पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी के विचार व तेवर कई दफे पार्टी लाइन से मेल नहीं खाते, अटकलें पहले भी खूब लगी हैं कि वरुण गांधी पाला बदल कर अपने नैसर्गिक घर कांग्रेस का रुख कर सकते हैं, वक्त गुजरता रहा, पर इन कयासों को कोई मुकम्मल चेहरा हासिल नहीं हो पाया। सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपने छोटे भाई वरुण गांधी से फोन पर एक लंबी बात की और उनके समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि ’2024 का लोकसभा चुनाव वह कांग्रेस की टिकट पर अमेठी से लड़ जाएं, क्योंकि अमेठी उनके स्वर्गीय पिता संजय गांधी की पसंदीदा और परंपरागत सीट में शुमार रही है।’ पर सूत्रों का कहना है कि वरुण ने अपनी बहन के इस प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया। समझा जाता है तब प्रियंका ने उन्हें मनाते हुए कहा कि ’वे अमेठी से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ जाएं कांग्रेस व सपा जैसी पार्टियां उन्हें अपना समर्थन दे देंगी।’ पर वरुण ने कहा कि वे पीलीभीत छोड़ कर अन्यत्र कहीं और जाना नहीं चाहते, क्योंकि पिछले कई सालों से उन्होंने पीलीभीत की जनता के लिए अपना खून पसीना बहाया है, यहां के लोगों के साथ उनका एक दिल का रिश्ता कायम हुआ है, जिसे वे तोड़ना नहीं चाहते। दरअसल, इस दफे अमेठी और रायबरेली से न सोनिया, न राहुल और न ही प्रियंका चुनाव लड़ना चाहते। इस बात की पहली सुगबुगाहट तब मिली जब रायबरेली के सांसद प्रतिनिधि किशोरी लाल से गांधी परिवार की ओर से कहा गया कि वे रायबरेली छोड़ कर कहीं और की जिम्मेदारी ले लें। दरअसल, अमेठी व रायबरेली इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस पार्टी की ओर से एक जनमत सर्वेक्षण करवाया गया था और सर्वेक्षण के नतीजों में बताया गया कि अमेठी व रायबरेली ये दोनों ही सीट राहुल व प्रियंका के चुनाव लड़ने के लिए सुरक्षित नहीं है, इसके बाद ही प्रियंका ने अपने छोटे भाई वरुण की ओर रुख किया।
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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अब भी राहुल गांधी की प्रस्तावित ’भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को लेकर इतने आश्वस्त नहीं हैं। खड़गे से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि दरअसल, अध्यक्ष जी की असली चिंता पार्टी फंड को लेकर है, सूत्रों की मानें तो पार्टी फंड में अभी मात्र 489 करोड़ रूपयों के आसपास की रकम इकट्ठी है, राहुल की यात्रा में ही 250 करोड़ रूपयों के आसपास लग जाने है और अभी सिर पर आम चुनाव भी हैं। सो, बचे हुए इतने कम पैसों में भला पार्टी लोकसभा के चुनाव कैसे लड़ पाएगी। कहते हैं खड़गे ने अपनी इसी चिंता से राहुल को वाकिफ करा दिया है। इस पर राहुल ने सुझाव दिया कि ’अगर हमारे पास पैसों की इतनी ही तंगी है तो कांग्रेस अपने किसी भी प्रत्याशी को लोकसभा चुनाव लड़ने का खर्च नहीं देगी।’ इस पर खड़गे का कहना है कि ’इस सूरत में पार्टी को अच्छे उम्मीदवारों का टोटा पड़ जाएगा,’ पर इस पर राहुल क्रांतिकारी मोड में हैं, कहते हैं ’हम देश में एक सकारात्मक परिवर्तन लाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, इस लड़ाई में जिसे भी हमारे साथ आना है वे सिर पर कफ़न बांध कर आएं।’
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2024 के आम चुनावों के लिए भाजपा का लक्ष्य सवा चार सौ सीटों पर जीत दर्ज कराने का है। 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कुल 543 में से सिर्फ 436 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से पार्टी ने 303 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इनमें से 160 सीटों पर पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था और 51 सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। गठबंधन धर्म के तहत तीन राज्यों यानी पंजाब, बिहार व महाराष्ट्र की 56 सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार ही नहीं उतारे थे। भाजपा ने पंजाब की 13 में से 3, महाराष्ट्र की 48 में से 25 और बिहार की 40 में से मात्र 17 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारे थे। इस बार भाजपा की योजना पंजाब, बिहार व महाराष्ट्र की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की है। इसके लिए संभावित उम्मीदवारों के नाम की सूची पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के पास पहुंचने लगी है। पश्चिम यूपी में भाजपा पहले रालोद के साथ गठबंधन करना चाहती थी, अब पार्टी ने मन बना लिया है कि वह वहां भी अकेले चुनाव लड़ेगी। सो, पश्चिमी यूपी में रालोद व सपा का प्रभाव कम करने के लिए भाजपा से जुड़े संगठन वहां के गांवों में हर सप्ताह धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं, जहां कार्यक्रम के बीच में मोदी सरकार की योजनाओं का बखान होता है।